सोमवार, 1 सितंबर 2014

सर झुकाने के सौ बहाने हैं

उनके होठों से गालियाँ झरतीं 
हमारे होठों पै तराने हैं  

चाहते, वो कहें कि ये कर दो, 
हुक्म लेने के हम दीवाने हैं  

झूठ हो, सच हो, बदगुमानी हो,
हमें, बस, हाँ में हाँ मिलाने हैं  

ख़ुद को नौकर  कहें, मगर उनका,
इसी ग़फ़लत में हम सयाने हैं  

उनके जूतों की छाँह में अपने  
शब--लज्ज़त के आशियाने हैं  

जोड़ते हाथ पत्थरों को भी,
हमारे होश क्या ठिकाने हैं  

हमारे ख़ून में ग़ुलामी है,
सर झुकाने के सौ बहाने हैं  


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