उनके होठों से गालियाँ झरतीं,
हमारे होठों पै तराने हैं ।
चाहते, वो कहें कि ये कर दो,
हुक्म लेने के हम दीवाने हैं ।
झूठ हो, सच हो, बदगुमानी हो,
हमें, बस, हाँ में हाँ मिलाने हैं ।
ख़ुद को नौकर कहें, मगर उनका,
इसी ग़फ़लत में हम सयाने हैं ।
उनके जूतों की छाँह में अपने
शब-ए-लज्ज़त के आशियाने हैं ।
जोड़ते हाथ पत्थरों को भी,
हमारे होश क्या ठिकाने हैं ।
हमारे ख़ून में ग़ुलामी है,
सर झुकाने के सौ बहाने हैं ।
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