सोमवार, 1 सितंबर 2014

ऊमस

कोलाहलवह  अट्टहासवह  स्मित-अपनापन, 
वह मिलनावह चौकवहां  घंटों बतियाना,
वे  इतवारधूप में सिकनाचाय पकौड़े,
एक हवा  के झोंके से सब बिखर गए क्या, 
या, सारे रिश्ते केवल  छिछलेसतही  थे ?  

धूप सहमकर किसी शाख पर जा  चिपकी है
श्यामल बादल थके-थकेनभ के कोनों में 
लाल हुए जा रहे विफलता की ब्रीड़ा  से 
हवा अधर पर उंगली रख कर मौन हो गयी 
यह ऊमसबेबसी, कहाँ से  टपकी है ! 


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