हम टायर लगे पहिये हैं
जो अपने फेंफड़ों में दम रोके
जेठ की धूप में
तवे सी जलती ऊबड़ खाबड सड़कों पर दौडते
गाड़ी को सर पर लिए
चार गधों को
जिसे सवारी कह्ते हैं
मुक़ाम के क़रीब तक ले जाने के लिए ही
जी रहे हैँ ।
नहीं जानते, कब, कहाँ और किस वज़ह से
हम में से एक
पंक्चर हो जाएगा,
दम तोड़ देगा
बीच सड़क पर
वहां
जहाँ से सवारियों के मुक़ाम
बहुत, बहुत दूर हों
और
पंक्चर बनाने वाले की दूकान
ढूंढे न मिलती हो ।
प्रभु, ऐसा न होने देना
शंकर, तेरा सहारा
बुरे का हो मुँह काला
फ़िर मिलेंगे ।
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