मंगलवार, 22 जुलाई 2014

पहिये

हम टायर लगे पहिये हैं 
जो अपने फेंफड़ों में दम रोके 
जेठ की धूप में 
तवे सी जलती ऊबड़ खाबड सड़कों पर दौडते 
गाड़ी को सर पर लिए 
चार गधों को 
जिसे सवारी कह्ते हैं 
मुक़ाम के क़रीब तक ले जाने के लिए ही 
जी रहे हैँ  

नहीं जानते, कब, कहाँ और किस वज़ह से 
हम में से एक 
पंक्चर हो जाएगा,
दम तोड़ देगा 
बीच सड़क पर    
वहां 
जहाँ से सवारियों के मुक़ाम 
बहुत, बहुत दूर हों  
और 
पंक्चर बनाने वाले की दूकान 
ढूंढे मिलती हो  

प्रभु, ऐसा होने देना 
शंकर, तेरा सहारा 
बुरे का हो मुँह काला 
फ़िर मिलेंगे   

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