गुरुवार, 31 जुलाई 2014

मृत्युदेव आने वाले हैं ।

मेरा इतना भाग्यधरा पर 
नभ ने आने को सोचा है !
मुक्त करा कारा से  मुझको 
लेकर जाने को सोचा है !

इतनी कृपा ! कहाँ थे अब तक !   
नाहक़ इतनी देर लगायी !
लगता हैआवाज़ हमारी  
उन  तकपहलेपहुँच  पायी !  

देव दयामय की आगवनी 
मैं दरिद्र क्या कर पाऊँगा ?
मैं मिट्टी कावे तेजोमय 
कैसा अर्चन कर पाऊँगा ?

क्या नैवेद्य चढ़ाऊँगा मैं ?
मैं तो एक अकिंचन नर हूँ !
मेरा सब कुछ मिटटी का है 
मैं निर्धननिरीह,  कातर हूँ !   

हाँअब आया यादहमारा  
कुछ भी नहीं प्राण सा निर्मल 
क्यों  इसे नैवेद्य चढ़ाऊँ ?
यही बने अर्चन का सम्बल ! 
  
आओप्रभुमैं विगतमोह हूँ 
तेरी पूजा कर पाऊँगा  
तेरे चरणोँ में छोटी-सी 
भेंट प्राण की  रख पाऊँगा 

अब मैं खुश हूँअभिनन्दन है !
सारे दुख जाने वाले हैं  

मृत्युदेव आने वाले हैं       
  
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रबीन्द्रनाथ ठाकुर की एक कविता से अनुप्राणित 

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