गुरुवार, 31 जुलाई 2014

मृत्युदेव आने वाले हैं ।

मेरा इतना भाग्यधरा पर 
नभ ने आने को सोचा है !
मुक्त करा कारा से  मुझको 
लेकर जाने को सोचा है !

इतनी कृपा ! कहाँ थे अब तक !   
नाहक़ इतनी देर लगायी !
लगता हैआवाज़ हमारी  
उन  तकपहलेपहुँच  पायी !  

देव दयामय की आगवनी 
मैं दरिद्र क्या कर पाऊँगा ?
मैं मिट्टी कावे तेजोमय 
कैसा अर्चन कर पाऊँगा ?

क्या नैवेद्य चढ़ाऊँगा मैं ?
मैं तो एक अकिंचन नर हूँ !
मेरा सब कुछ मिटटी का है 
मैं निर्धननिरीह,  कातर हूँ !   

हाँअब आया यादहमारा  
कुछ भी नहीं प्राण सा निर्मल 
क्यों  इसे नैवेद्य चढ़ाऊँ ?
यही बने अर्चन का सम्बल ! 
  
आओप्रभुमैं विगतमोह हूँ 
तेरी पूजा कर पाऊँगा  
तेरे चरणोँ में छोटी-सी 
भेंट प्राण की  रख पाऊँगा 

अब मैं खुश हूँअभिनन्दन है !
सारे दुख जाने वाले हैं  

मृत्युदेव आने वाले हैं       
  
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रबीन्द्रनाथ ठाकुर की एक कविता से अनुप्राणित 

मंगलवार, 29 जुलाई 2014

आज कर लें गुफ़्तगू जी खोल कर

बोझ दिल पर था  ज़माने से पड़ा 
आज वह हलका करें कुछ बोल कर 

घूँट पीकर भी ज़हर का, बोलते 
बात अपनी चाशनी में घोल कर 

शिद्दतों में जिंदगी गुज़री, मग़र 
उफ़ नहीं कहते बना मुँह खोल कर    

आँसुओं में रात ग़र कटती रहे  
क्यों रखें सबंध ऐसे जोड़  कर 

आसमाँ  की कहकशाँ को मैं चला 
दर्द सारे इस ज़मीं पर छोड़ कर 

क्या बताएँ  हम कि कल  होंगे कहाँ
आज कर लें गुफ़्तगू जी खोल कर |

मंगलवार, 22 जुलाई 2014

मेरा घर है कारागार

आगे लोहे के दरवाजे 
पीछे पथ्थर  की दीवार 
दाँये बाँये अंधी गलियाँ 
मेरा,  बस, इतना संसार  
 
रात और दिन क्या होते हैं ?
क्या नभ का आकार-प्रकार ? 
हवाबता दे, कैसा  लगता 
इन दीवारों के उस पार  

वर्ष, महीने, दिन गुजरते 
फिर क्या  उम्र गुजरती है ?
जीवन, मृत्यु, निराशा, आशा  
केवल  शब्दों का व्यभिचार        
   
हँसना, रोना, कहना, सुनना,
सोने, जगने का व्यापार
अर्थहीन मेरे हित सब कुछ 
मेरा घर है कारागार     

पहिये

हम टायर लगे पहिये हैं 
जो अपने फेंफड़ों में दम रोके 
जेठ की धूप में 
तवे सी जलती ऊबड़ खाबड सड़कों पर दौडते 
गाड़ी को सर पर लिए 
चार गधों को 
जिसे सवारी कह्ते हैं 
मुक़ाम के क़रीब तक ले जाने के लिए ही 
जी रहे हैँ  

नहीं जानते, कब, कहाँ और किस वज़ह से 
हम में से एक 
पंक्चर हो जाएगा,
दम तोड़ देगा 
बीच सड़क पर    
वहां 
जहाँ से सवारियों के मुक़ाम 
बहुत, बहुत दूर हों  
और 
पंक्चर बनाने वाले की दूकान 
ढूंढे मिलती हो  

प्रभु, ऐसा होने देना 
शंकर, तेरा सहारा 
बुरे का हो मुँह काला 
फ़िर मिलेंगे   

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